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ए॒वा ते॑ अग्ने सुम॒तिं च॑का॒नो नवि॑ष्ठाय नव॒मं त्र॒सद॑स्युः। यो मे॒ गिर॑स्तुविजा॒तस्य॑ पू॒र्वीर्यु॒क्तेना॒भि त्र्य॑रुणो गृ॒णाति॑ ॥३॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

evā te agne sumatiṁ cakāno naviṣṭhāya navamaṁ trasadasyuḥ | yo me giras tuvijātasya pūrvīr yuktenābhi tryaruṇo gṛṇāti ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए॒व। ते॒। अ॒ग्ने॒। सु॒ऽम॒तिम्। च॒का॒नः। नवि॑ष्ठाय। न॒व॒मम्। त्र॒सद॑स्युः। यः। मे॒। गिरः॑। तु॒वि॒ऽजा॒तस्य॑। पू॒र्वीः। यु॒क्तेन॑। अ॒भि। त्रिऽअ॑रुणः। गृ॒णाति॑ ॥३॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:27» मन्त्र:3 | अष्टक:4» अध्याय:1» वर्ग:21» मन्त्र:3 | मण्डल:5» अनुवाक:2» मन्त्र:3


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) अग्नि के सदृश तेजस्वी विद्वान् ! (यः) जो (ते) आपकी (सुमतिम्) सुन्दर बुद्धि को और (तुविजातस्य) बहुतों में प्रकट हुए (मे) मेरी (गिरः) वाणियों की (चकानः) कामना करता तथा (नविष्ठाय) अतिशय नवीन जन के लिये (नवमम्) नव के पूर्ण करनेवाले की कामना करता हुआ (त्रसदस्युः) त्रसदस्यु अर्थात् जिससे चोर डरते ऐसा (युक्तेन) किया योगाभ्यास जिससे ऐसे मन से (त्र्यरुणः) तीन मन, शरीर और आत्मा के सुखों को प्राप्त होता हुआ जन (पूर्वीः) अनादि काल से सिद्ध वाणियों को (अभि, गृणाति) सब ओर से कहता है (एवा) उसी का आप और हम निरन्तर सत्कार करें ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वन् ! आप और मैं जो हमारे समीप से गुणों के ग्रहण करने की इच्छा करता है, उसको हम दोनों विद्याग्रहण करावें ॥३॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे अग्ने ! यस्ते सुमतिं तुविजातस्य मे गिरश्चकानो नविष्ठाय नवमं चकानस्त्रसदस्युर्युक्तेन त्र्यरुणः सन् पूर्वीगिरोऽभि गृणाति तमेवा त्वमहं च सततं सत्कुर्य्याव ॥३॥

पदार्थान्वयभाषाः - (एवा) अत्र निपातस्य चेति दीर्घः। (ते) तव (अग्ने) (सुमतिम्) शोभनां प्रज्ञाम् (चकानः) कामयमानः (नविष्ठाय) अतिशयेन नवीनाय (नवमम्) नवानां पूरणम् (त्रसदस्युः) त्रस्यन्ति दस्यवो यस्मात्सः (यः) (मे)) मम (गिरः) (तुविजातस्य) (पूर्वीः) सनातनीः (युक्तेन) कृतयोगाभ्यासेन मनसा (अभि) (त्र्यरुणः) त्रीणि मनःशरीरात्मसुखान्यृच्छति (गृणाति) ॥३॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वँस्त्वमहं च य आवयोः सकाशाद् गुणान् ग्रहीतुमिच्छति तमावां विद्यां ग्राहयेव ॥३॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वाना! जो तुझ्या व आमच्या गुणांचे ग्रहण करण्याची इच्छा करतो त्याला आपण दोघांनीही विद्याग्रहण करवावे. ॥ ३ ॥